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यूक्रेन ने हथिया ली वह जगह, जहां रूस ने चखा था जीत का स्वाद, हिटलर गया था हार

Russia Ukraine War: रूस-यूक्रेन जंग के 2 साल से ज्यादा हो गए हैं. किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि इस जंग में परमाणु ताकत वाले रूस के सामने यूक्रेन जैसा छोटा देश इतने समय तक टिकेगा. सबको हैरान करते हुए यूक्रेन न केवल रूस के छक्के छुड़ाएं है, बल्कि उसने रूस के एक बहुत बड़े जमीन पर कब्जा जमा लिया है.

यह जगह है कुर्स्क है. कुर्स्क कोई आम जगह नहीं है. यह रूस के लिए काफी मायने रखता है. यह रूस से उस समय से जुड़ा हुआ है, जब रूस केवल रूस नहीं बल्कि सोवियत यूनियन हुआ करता था. यह वही जगह है, जहां पर रूस ने द्वितीय विश्व युद्ध में जीत का स्वाद चखा था. मित्र देश की तरफ से लड़ते हुए सोवियत यूनियन ने जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर की सेना को हराया था. कुर्स्क एक तरह से रूस का विक्ट्री प्वांइट भी माना जाता है.द्वितीय विश्व युद्ध अपने चरम पर था. जर्मनी लगभग अजेय माना जा रहा था. उसने यूरोप को लगभग बैकफुट पर धकेल दिया था. यूरोप पर विजय प्राप्त के लिए उसे सोवियत यूनियन (रूस) को जीतना जरूरी था. जून 1942 में जर्मनी की सेना सोवियत यूनियन की ओर रूख किया. सेना रूस के स्टेलिनग्राद पहुंची, दोनों देशों के बीच जमकर जंग हुआ, लेकिन, नवंबर के आखिर तक कोई परिणाम नहीं निकला. इसी दौरान रूस में भीषण ठंड पड़ने लगती है. जंग में जर्मनी के बहुत सैनिक मारे गए, सैनिकों का राशन भी खत्म होने के कागार पर था, हथियार युद्ध लड़ने भर के लिए नहीं बचे थे. जर्मनी के सेना पास सरेंडर करने के अलावा कोई और चारा नहीं था.

आखिरी गोली तक टिके रहो
हिटलर ने अपने सैनिकों को आदेश दिया था, ‘आखिरी आदमी और आखिरी गोली तक अपनी स्थिति बनाए रखें…’ लेकिन, जर्मन जनरल फ्रेडरिक पॉलस ने हिटलर के आदेशों के खिलाफ जाकर 2 फरवरी, 1943 सरेंडर कर दिया. हिटलर को यह मंजूर नहीं था. उसने इसे देशद्रोह करार दिया था. उसने रूस को धरती से मिटाने का फैसला किया. यह द्वितीय विश्व युद्ध में उसकी हार की पहली कड़ी भी साबित हुई. रूस से हार के बाद वापस लौट रही उसकी सेना कुर्स्क (दक्षिणी रूस का भाग) पहुंच चुकी थी. यह एक न्यूट्रल जगह था. हिटलर ने उनको वहीं पर रूकने का आदेश दिया. अब वह बड़े पैमाने पर आक्रमण के लिए एक बड़ी सैन्य टुकड़ी वहां भेजा.

पहली बार रूस ने जीत का स्वाद चखा था
रूस में हराने की चाह लिए हिटलर ने जर्मनी के लाखों सैनिकों, हजारों टैंक और बख्तरबंद तोपों के साथ कुर्स्क भेजा. यहां से शुरू होता है- जर्मनी का ऑपरेशन बारबारोसा. रूस और जर्मनी में इन क्षेत्रों में लगभग 1 साल से युद्ध चलता रहा. जर्मनी के उम्मीद के विरुद्ध रूस की सेना ने शानदार प्रदर्शन करते हुए जर्मनी को हरा दिया. इस भीषण जंग में जर्मनी के 2 लाख से अधिक सैनिक मारे गए और 1 हजार से ज्यादा टैंक भी नष्ट कर दिया गया. द्वितीय विश्व युद्ध में इसी जगह पर सोवियत यूनियन की सेना यानी कि रूस की सेना ने अगस्त 1943 में जीत का स्वाद चखा था.

यूक्रेन ने कुर्स्क पर जमाया कब्जा
इस युद्ध में पहली बार ऐसा हुआ जब रूस अपने रक्षा प्रणाली पर कंट्रोल नही कर पाया. यूक्रेन सेना की कुर्स्क आभियान की योजना काफी सिक्रेट थी. बॉर्डर पर चहलकदमी कर रहे सैनिकों को ऐसे दिखाया गया था, मानों अपने सीमा के अंदर अभ्यास कर रहे हों. रूस को अटैक की तनिक भी भनक नहीं लगी. रूस यहां पर अटैक के लिए बिलकुल तैयार नहीं था. वहीं, यूक्रेन ने अमेरिका के हाई क्वालिटी वाले ग्लाइड बमों का इस्तेमाल कर कुर्स्क पर अपना कब्जा जमाया. यूक्रेन को कुर्स्क में जैसी सफलता मिली ऐसी तो जर्मनी को भी 1943 में भी नहीं मिली थी. इस अटैक का वीडियो भी जारी किया गया है. कुर्स्क क्षेत्र में रूसी प्लाटून बेस पर जीबीयू-39 बमों से किये गए हमले, रूसी घायल होते हुए और रूसी हथियारों के नष्ट होते हुए दिखाया गया है.


खारकीव पर भी यूक्रेन को बढ़त
यूक्रेन ने न केवल रूस के कुर्स्क पर कब्जा किया है. उन्होंने दावा किया है कि यूक्रेन के तीसरी असॉल्ट ब्रिगेड ने रूस के खारकीव क्षेत्र में लगभग दो स्क्वायर किलोमीटर तक कब्जा कर लिया है. हालांकि अभी तक यह जानकारी नहीं मिल पाई है कि यह हमला कब हुआ. हमले की इंटेसिटी यानी कि कितना अटैकिंग था. यूक्रेन द्वारा खारकीव क्षेत्र में जवाबी हमला ऐसे समय में किया गया है, जब उसकी सेनाओं ने इस महीने रूस के कुर्स्क कब्जा कर एक अहम बढ़त हासिल कर ली है और यूक्रेन की सेना ने तो युद्ध की गति को बदल दिया है. वहीं, यूक्रेन की ओर से रूस के सैन्य और ईंधन को टारगेट कर लगातार ड्रोन हमले किए जा रहे है. इन हमलों से रूस को भारी नुकसान का दावा किया गया है

रि० जन सेवा भारत न्यूज़ पोर्टल सम्पादक श्री मुहीत चौधरी जी की क़लम से

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