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PM Modi Birthday: बचपन में थिएटर भी करते थे पीएम मोदी, काफी मशहूर था उनका यह नाटक

पीएम नरेंद्र मोदी का आज यानी 17 सितंबर को जन्मदिन है. आज के दिन लोग उनके बारे में सब कुछ जानना चाहते हैं. वैसे तो पीएम मोदी का जीवन एक खुली किताब की तरह है, लेकिन उनके बारे में कुछ बातें हैं, जो आपको शायद न मालूम हों.

ऐसी ही एक बात उस नाटक से जुड़ी है, जिसे पीएम मोदी ने खुद लिखा था. चलिए आपको इसके बारे में विस्तार से बताते हैं. इसके साथ ही आपको ये भी बताते हैं कि पीएम मोदी का थिएटर और अभिनय से कितना गहरा लगाव था.

पीएम मोदी की अभिनय में दिलचस्पी

साल 2013 में, जब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री नहीं बने थे, तब उनके जीवन पर एक किताब लिखी गई थी. किताब का नाम था ‘द मैन ऑफ द मोमेंट: नरेंद्र मोदी’. इस किताब को एमवी कामथ और कालिंदी रंदेरी (MV Kamath And Kalindi randeri) ने लिखा था. इस किताब में एक जगह बताया गया है कि बचपन में पीएम मोदी की अभिनय और नाटक में बहुत रुचि थी.

वह अक्सर अपने स्कूल में होने वाले नाटकों में भाग लिया करते. यहां तक कि एक नाटक तो उन्होंने खुद लिखा था. वहीं पीएम मोदी ने अपनी किताब Exam Warriors में लिखा है कि एक बार स्कूल में नाटक की प्रैक्टिस करते समय उन्हें लगा कि वह डायलॉग डिलीवरी परफेक्ट तरीके से कर रहे हैं.

हालांकि, वह चाहते थे कि यह बात नाटक का डायरेक्टर उनसे खुद कहे. इसीलिए अगले दिन जब वह स्कूल पहुंचे तो उन्होंने डायरेक्टर से कहा कि आप मेरी जगह आकर मुझे बताएं कि मैं कहां गलत कर रहा हूं. पीएम मोदी ने लिखा कि कुछ ही सेकंड में मुझे पता चल गया कि मैं कहां गलती कर रहा हूं और कैसे इसे बेहतर कर सकता हूं.

मशहूर था पीएम मोदी का यह नाटक

आज तक की रिपोर्ट के मुताबिक, पीएम मोदी जब 13 या 14 साल के थे तब उन्होंने ने अपने स्कूल में एक नाटक किया था पीलू फूल. हिंदी में इसका मतलब होता है पीले फूल. कहा जाता है कि पीएम मोदी ने इस नाटक को खुद लिखा था. इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि पीएम मोदी और उनकी टोली ने ये नाटक इसलिए किया था ताकि वह अपने स्कूल के कंपाउंड की टूटी हुई दीवार को बनवाने के लिए फंड जमा कर सकें.

1963-64 में हुए पीले फूल नाटक का विषय था अस्पृश्यता. यानी समाज में फैली छुआ-छूत की धारणा. हालांकि, इससे पहले ही देश की संसद द्वारा साल 1955 में अस्पृश्यता को अपराध घोषित कर दिया गया था. लेकिन इसके बाद भी, जिस वक्त ये नाटक हुआ उस वक्त तक समाज में अस्पृश्यता भीतर तक अपने जड़े जमाए हुए थी.

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