
आपको बाँदा की सिविल जज अर्पिता साहू की वो वायरल चिट्ठी याद होगी जो उन्होंने CJI कोलिखी थी. उन्होंने लिखा था कि CJI उन्हें इच्छामृत्यु की इजाज़त दें क्योंकि एक जज होने के बावजूद अर्पिता न्याय हासिल नहीं कर पाई. 2022 में कार्यस्थल पर हुए यौन शोषण के ख़िलाफ़ अर्पिता ने POSH क़ानून के तहत शिकायत दर्ज की थी. अर्पिता ने अपनी खुली चिट्ठी में कहा था कि यह क़ानून हमारे किसी काम का नहीं. यह चिट्ठी वायरल होने के बाद CJI ने इस केस पर रिपोर्ट तलब की.

आज सोशल मीडिया में एक और केस बदायूँ का सामने आया जिसमें एक अन्य सिविल जज ज्योत्सना राय ने अपने सरकारी आवास पर फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली. कारण अज्ञात हैं और परिस्थितियाँ बेहद संदिग्ध. ज्योत्सना के पिता ने हत्या संदेह जताया है.
अर्पिता साहू जो आत्महत्या करना चाहती थीं और ज्योत्सना राय जो आत्महत्या कर चुकीं दोनों केस दुखद हैं.
न्यायपालिका का अंग होकर न्याय पाने में असमर्थ होना अलग लेवल का कष्ट है, एक औरत का नहीं देश की हर औरत के हिस्से आने वाला क्योंकि इसके बाद यह समझ नहीं आता कि देश की हर आम औरत इस सिस्टम में कैसे यक़ीन करे? उसे कैसे भरोसा हो कि वह बोलेगी और सुन लिया जाएगा? जिसे क़ानूनों और उनकी बारीकियों का भी ज्ञान नहीं जब वह आवाज़ उठाएगी तो बिना उसे पागल या झूठा साबित किए सुन लिया जाएगा?
स्वामी, बाबा कांड कर कर के छूट जा रहे हैं और महिलाएँ आत्महत्या कर ले रही हैं. ये अच्छे दिन किसी को नहीं चाहिए.