अमेरिका की धरती पर मौजूद संयुक्त राष्ट्र महासभा में सोमवार को अमेरिका और उसका साथी देश इजरायल अलग-थलग पड़ते हुए नजर आए। फ्रांस और सऊदी अरब द्वारा फिलिस्तीनी मुद्दे को लेकर बुलाई गई बैठक में दर्जनों वैश्विक नेता फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने के लिए बैठे नजर आए।
यह बैठक पिछले दो साल से जारी गाजा युद्ध को लेकर वैश्विक स्तर पर बदलते माहौल का प्रतीक है, जिसमें अमेरिका और इजरायल को विरोध का सामना करना पड़ रहा है।
इस बैठक के दौरान फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने ऐतिहासिक रूप से फिलिस्तीनी राष्ट्र को मान्यता देने की घोषणा की। इसके पहले रविवार को ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे प्रमुख देश भी फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके हैं। बैठक के दौरान फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रों ने कहा, “हमें द्वि-राष्ट्र समाधान की संभावना को बनाए रखने के कलिए अपनी पूरी शक्ति से प्रयास करना चाहिए। ताकि इजरायल और फिलिस्तीनी लोगों के जीवन में शांति और सुरक्षा आ सके।” मैक्रों के इस बयान का हॉल में मौजूद लोगों ने जोरदार ताली बजाकर स्वागत किया।
मैक्रों के अलावा, तुक्रीए के राष्ट्रपति तैयप एर्दोगन, कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इस कार्यक्रम के दौरान अपना संबोधन दिया।
इतना ही नहीं फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने फिलिस्तीन में शांति स्थापित करने के लिए एक योजना पर भी लोगों का ध्यान आकर्षित किया। इस योजना के तहत फ्रांस, उस क्षेत्र में सुधारों, युद्धविराम और हमास द्वारा बंधक बनाए गए सभी बंधकों की रिहाई को लेकर काम करने के लिए एक दूतावास खोलेगा।
आपको बता दें इसी सप्ताह होने वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के पहले अंडोरा, बेल्जियम, लक्जमबर्ग और सैन मैरिनो द्वारा भी फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता दिए जाने की उम्मीद है। माल्टा और मोनाको ने सोमवार को ही फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता दे दी है। गौरतलब है कि यह एक ऐसा फैसला है, जिससे फिलिस्तीन में मौजूद जनता का मनोबल तो बढ़ सकता है, लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ बदलाव कि संभावना नहीं है।
फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास को इस बैठक में शामिल होने के लिए अमेरिका की तरफ से वीजा नहीं दिया गया था। इसी वजह से उन्होंने वीडियो कॉल के जरिए अपनी बात रखी। फ्रांस समेत कई देशों द्वारा मान्यता दिए जाने पर धन्यवाद देते हुए उन्होंने कहा, “हम उन सभी लोगों से भी ऐसा करने का आह्वान करते हैं, जिन्होंने अभी तक ऐसा नहीं किया है। हम आपसे समर्थन की अपील करते हैं ताकि फिलिस्तीन संयुक्त राष्ट्र का पूर्ण सदस्य बन सके।”
आपको बता दें वर्तमान में फिलिस्तीनी राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतिनिधिमंडल को संयुक्त राष्ट्र में पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है लेकिन मतदान का अधिकार नहीं है। चाहे कितने भी स्वतंत्र देश फिलिस्तीन को मान्यता दे दें, लेकिन संयुक्त राष्ट्र की पूर्ण सदस्यता तब तक नहीं मिलेगी, जब तक सुरक्षा परिषद की मंजूरी नहीं मिल जाती। सुरक्षा परिषद में अमेरिका वीटो लेकर बैठा हुआ है, जो कि इजरायल के समर्थन में फिलिस्तीन को मान्यता देना का विरोधी है।
गौरतलब है कि यूरोपीय समेत तमाम देशों का फिलिस्तीन को मान्यता देने का यह क्रम ऐसे समय में शुरू हुआ है, जब गाजा में लगातार इजरायल द्वारा बम बरसाए जा रहे हैं। बाकी देशों द्वारा फिलिस्तीन को मान्यता देने का विरोध करते हुए इजरायली पीएम नेतन्याहू ने कहा था कि यहां पर कोई फिलिस्तीनी राज्य नहीं बनेगा। वहीं इजरायल के पक्ष में अपना मत स्पष्ट करते हुए ट्रंप कई बार अपनी बात रख चुके हैं। यहां तक कि हाल ही में ब्रिटेन यात्रा के दौरान भी उन्होंने ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर से फिलिस्तीन को मान्यता देने के फैसले के बारे में एक बार फिर से सोचने की सलाह दी थी।




