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चीनी निवेश की क्यों सिफारिश कर रहा है नीति आयोग? बता दिया पूरा प्लान

जबभी भारत और चीन के रिश्तों की बात आती है तो गलवान घाटी का 4 साल पुरानी मुठभेड़ ताजा हो जाती है. उसके बाद भारत सरकार ने चीन के कई ऐप पर बैन लगाना जहन में आता है और याद आता है कि चीन के सामानों का बहिष्कार.

इन तमाम बातों को करीब 4 साल बीत चुके हैं. इस दौरान भारत और चीन का ट्रेड खराब रिश्तों के बाद भी आसमान पर है. भारत की चीन पर से डिपेंडेंसी कम नहीं हुई है. वित्त वर्ष 2024 की बात करें तो दोनों देशों के बीच ट्रेडिंग 118 अरब डॉलर की देखने को मिली थी. जिसमें से भारत का ट्रेड डेफिसिट 85 अरब डॉलर का देखने को मिला था. अब आप समझ सकते हैं कि भले ही भारत और चीन के बीच कितने ही रिश्ते खराब हो जाएं, दोनों देशों बीच कारोबार जारी रहेगा.

ऐसे में देश के नीति आयोग ने अपने हाल के इकोनॉमिक सर्वे में चीन से ट्रेड डेफिसिट को कम करने का ऑप्शन सुझाया था. नीति आयोग ने कहा था कि भारत को अब चीन प्लस वन पॉलिसी का फायदा उठाते हुए चीनी इंवेस्टमेंट को वेलकम करना चाहिए. ना कि उन कंपनियों के प्रोडक्ट्स इंपोर्ट करना चाहिए. ऐसा करने से देश के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर तो बूस्ट मिलेगा ही साथ ही जॉब भी जेनरेट होंगी. अब एक बार फिर से नीति आयोग के मेंबर ने चीनी निवेश की सिफारिश की है. आइए आपको भी बताते हैं कि आखिर नीति आयोग के मेंबर अरविंग विरमानी ने चीन के इंवेस्टमेंट की तरफतारी क्यों कर रहे हैं.

नीति आयोग की फिर आई सिफारिश

नीति आयोग के सदस्य अरविंद विरमानी ने कहा है भारत के लिए यह बेहतर होगा कि वह चीन से उत्पादों का आयात करने के बजाय पड़ोसी देश की कंपनियों को भारत में निवेश करने और वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए आकर्षित करे. उन्होंने कहा कि इस तरह के कदम से उत्पादों के स्थानीय विनिर्माण को प्रोत्साहन मिलेगा. आम बजट से एक दिन पहले 22 जुलाई को पेश आर्थिक समीक्षा में स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने और निर्यात बाजार का लाभ उठाने के लिए चीन से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की वकालत की गई है.

इंपोर्ट से बेहतर है इंवेस्टमेंट

विरमानी से इसी बारे में पूछा गया था. विरमानी ने कहा कि तो, जिस तरह से एक अर्थशास्त्री इसे देखता है. अगर कुछ आयात होने जा रहा है, जिसे हम वैसे भी 10 साल या 15 साल के लिए आयात करने जा रहे हैं, ऐसे में यह बेहतर होगा कि हम चीन की कंपनियों को भारत में निवेश करने और यहां उत्पादन करने के लिए आकर्षित करें. आर्थिक समीक्षा में कहा गया था कि चूंकि अमेरिका और यूरोप अपनी तत्काल सोर्सिंग चीन से हटा रहे हैं, इसलिए चीनी कंपनियों का भारत में निवेश करना अधिक प्रभावी है. समीक्षा में कहा गया था कि चीन प्लस वन रणनीति से लाभ उठाने के लिए भारत के सामने दो विकल्प हैं – वह चीन की आपूर्ति श्रृंखला में एकीकृत हो सकता है या चीन से एफडीआई को बढ़ावा दे सकता है.

क्यों चीन है फायदेमंद?

विरमानी ने कहा कि हमें चीन से आयात जारी रखने के बजाय इसकी अनुमति देनी चाहिए. उन्होंने कहा कि इन विकल्पों में चीन से एफडीआई पर ध्यान देना अमेरिका को भारत का निर्यात बढ़ाने के लिए अधिक आशाजनक लगता है. इसमें कहा गया है कि इसके अलावा, चीन से लाभ पाने की रणनीति के रूप में एफडीआई को चुनना व्यापार पर निर्भर रहने की तुलना में अधिक फायदेमंद प्रतीत होता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि चीन, भारत का शीर्ष आयात भागीदार है, और चीन के साथ व्यापार घाटा बढ़ रहा है.

चार साल पहले आई थी खटास

अप्रैल, 2000 से मार्च, 2024 तक भारत में आए कुल एफडीआई इक्विटी प्रवाह में केवल 0.37 प्रतिशत हिस्सेदारी (2.5 अरब अमेरिकी डॉलर) के साथ चीन 22वें स्थान पर है. जून, 2020 में गलवान घाटी में हुई भीषण झड़प के बाद दोनों देशों के बीच संबंधों में काफी खटास आई है. भारत हमेशा से कहता रहा है कि सीमा क्षेत्रों पर शांति से पहले उसके चीन के साथ संबंध सामान्य नहीं हो सकते हैं. दोनों देशों के बीच तनाव के चलते भारत ने टिकटॉक सहित चीन के 200 से अधिक मोबाइल ऐप पर प्रतिबंध लगाया है.

रि० जन सेवा भारत न्यूज़ पोर्टल सम्पादक श्री मुहीत चौधरी जी की क़लम से

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