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रूस के जिस कत्युशा रॉकेट से इजरायल में हिजबुल्ला ने मचाई तबाही, कितना घातक है?

बेरूत. इजरायल ने रविवार सुबह जैसे ही दक्षिणी लेबनान पर ताबड़तोड़ हवाई हमले किए, ईरान समर्थित आतंकवादी समूह हिजबुल्ला ने कहा कि उसने ‘जैसे को तैसा’ कार्रवाई के तहत हमले में 11 इजरायल के ‘गोलान हाइट्स’ में 11 ठिकानों, बैरकों और सैन्य अड्डों पर 320 से अधिक कत्युशा रॉकेट के साथ ही बड़ी संख्या में ड्रोन दागे.

उसने कहा कि ऑपरेशन के तहत उसने ‘एक अहम इजरायली सैन्य स्थल को निशाना बनाकर हमला किया है’ तथा साथ ही “दुश्मन के कई स्थलों एवं बैरकों और ‘आयरन डोम’ प्लेटफॉर्म को भी निशाना बनाया गया.”

हिजबुल्ला ने कहा कि ये हमले पिछले महीने बेरूत के दक्षिणी उपनगरों में हुए हमले में समूह के शीर्ष कमांडर फौद शुकूर की हत्या के जवाब में किए गए. कत्युशा रॉकेट को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सोवियत संघ ने बनाया था और अब यह हिज़्बुल्ला के आर्टिलरी में रखे प्राथमिक हथियारों में से एक है. शिया मिलिशिया हिजबुल्ला ने इज़रायल के खिलाफ अपने आक्रामक अभियान में बड़े पैमाने पर कत्युशा रॉकेट का इस्तेमाल किया है.

कत्युशा रॉकेट क्या हैं?
‘कत्युशा’ शब्द एक बोलचाल का उपनाम है जो इसी नाम के युद्ध के समय गाए जाने वाले एक लोकप्रिय सोवियत गीत से लिया गया था. सोवियत सैनिकों के बीच गीत की लोकप्रियता के कारण ही यह नाम रॉकेट लॉन्चरों से जुड़ गया था. कत्युशा रॉकेट सिस्टम का विकास 1930 के दशक के अंत में शुरू हुआ जब सोवियत सैन्य इंजीनियर तोपखाने की ताकतों में सुधार के तरीके तलाश रहे थे. उन्होंने एक ऐसा हथियार बनाने पर फोकस किया जो एक बड़े क्षेत्र में तेजी से अधिक मात्रा में विस्फोटक पहुंचा सके, जिससे मल्टीपल रॉकेट लॉन्चर का कॉनसेप्ट सामने आया.

कितनी है कत्युशा रॉकेट की रेंज
पहला कत्युशा रॉकेट लॉन्चर, जिन्हें बीएम-13 के नाम से जाना जाता है, को सोवियत संघ में रिएक्टिव साइंटिफिक रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरएनआईआई) में जॉर्जी लैंगमैक, बोरिस पेट्रोपावलोव्स्की और एंड्री कोस्टिकोव की अगुवाई वाली एक टीम द्वारा तैयार किया किया गया था. इन रॉकेटों को एम-13 का नाम दिया गया था, जहां ‘एम’ का अर्थ ‘Mina’ (रूसी में मेरा) था, और ’13’ रॉकेट के कैलिबर (132 मिमी) को दिखाता था. कत्युशा रॉकेट की रेंज 4 से 40 किलोमीटर तक होती है.

कत्युशा रॉकेट बेहद सरल, बिना गाइड वाले और सॉलिड फ्यूल पर चलते. इन रॉकेटों को अलग-अलग तरह के प्लेटफॉर्मों पर लगाया गया था, जिनमें ट्रक (सबसे प्रसिद्ध स्टडबेकर यूएस6 ट्रक, जो संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा लेंड-लीज के जरिए मिले थे) शामिल थे, जो तुरंत तैनाती और कहीं भी आवाजाही करने की इजाजत देता था. लॉन्चर तेजी से एक के बाद एक कई रॉकेट दाग सकते थे, जिससे ‘आग का तूफान’ पैदा हो सकता था, जो दुश्मन सेना और किलेबंदी के खिलाफ अत्यधिक प्रभावी था.

कत्युशा रॉकेट का इस्तेमाल पहली बार कब किया गया?
सोवियत संघ पर जर्मन आक्रमण के तुरंत बाद, जुलाई 1941 में सोवियत सेना द्वारा पहली बार युद्ध में कत्युशा रॉकेट लॉन्चर का उपयोग किया गया था. दर्ज रिकॉर्ड के मुताबिक बेलारूस के ओरशा के पास जर्मन तोपखाने के खिलाफ कत्युशा रॉकेट का इस्तेमाल हुआ था. कम समय में बड़ी मात्रा में गोलाबारी करने और दुश्मन को अचंभित करने की अपनी ताकत के कारण लॉन्चर असरदार साबित हुए. पूरे युद्ध के दौरान, वे सोवियत तोपखाने की शक्ति का प्रतीक बन गए और सभी मोर्चों पर बड़े पैमाने पर उपयोग किए गए.

कितने घातक हैं कत्युशा रॉकेट?
कत्युशा रॉकेट को इसलिए घातक माना जाता है क्योंकि इसके पास कम समय में बड़े क्षेत्र में बड़ी संख्या में विस्फोटक पहुंचाने की ताकत है. हालांकि, कत्युशा रॉकेट में सटीकता की कमी है, लेकिन साइकोलॉजिकल वॉर में असर, लगातार बमबारी करने की रणनीति में इस्तेमाल, और हताहतों की संख्या में इजाफा करने के साथ ही विनाश का कारण बनने की क्षमता कत्युशा रॉकेट को एक दुर्जेय हथियार बनाती है.

रि० जन सेवा भारत न्यूज़ पोर्टल सम्पादक श्री मुहीत चौधरी जी की क़लम से

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