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बगदाद में हमास-हूती विद्रिहियों ने खोला नया ऑफिस: 2500 अमेरिकी सैनिकों के नाक के नीचे ईरान ने कैसे जीता इराक?

Hamas News: ईरान और इराक, जो कभी कट्टर दुश्मन हुआ करते थे, वो पश्चिम एशिया में अशांत फैलाने एक साथ आ गए हैं। बढ़ते संबंधों का एक प्रमाण यह है, कि पिछले दो महीनों में दो मजबूत ईरान समर्थित मिलिशिया- हूती विद्रोहियों और हमास ने बगदाद में अपने कार्यालय खोले हैं।

इराकी सरकार ने अभी तक आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि नहीं की है, लेकिन तस्वीरें सामने आई हैं और न्यूयॉर्क टाइम्स सहित मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है, कि ईरान के प्रॉक्सी माने जाने वाले इन दोनों संगठनों के बगदाद में ऑफिस खुल गया है।

रिपोर्ट के मुताबिक, यमन के एक बड़े हिस्से पर नियंत्रण रखने वाले शिया समूह हूतियों ने जुलाई में बगदाद में अपना कार्यालय खोला है। वहीं, गाजा पर शासन करने वाला और वर्तमान में 11 महीने से ज्यादा समय से इजराइल के साथ युद्ध लड़ रहा हमास, जो एक मुख्य रूप से सुन्नी समूह है, उसने भी हाल ही में इराक में अपना कार्यालय खोला है।

बगदाद में उनके कार्यालयों का खुलना इराक के गठबंधनों में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है और यह बात की भी पुष्टि करता है, कि कैसे ईरान ने अमेरिकी सैनिकों की मौजूदगी और कड़ी अस्वीकृति के बावजूद – पश्चिम एशियाई क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ा लिया है। ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन ने पिछले सप्ताह अपने पहले विदेशी दौरे पर इराक का दौरा किया। दोनों देशों ने “ऐतिहासिक” दौरे के दौरान 14 द्विपक्षीय समझौते किए। बगदाद में इराक के प्रधान मंत्री मोहम्मद शिया अल-सुदानी के साथ एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में पेजेशकियन ने कहा, “गाजा में जायोनी शासन के अपराध, मानवाधिकारों के मामले में पश्चिमी देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के झूठ को उजागर करते हैं।”

यह सब तब हुआ है, जब अमेरिका 20 से ज्यादा सालों से इराक में अपनी सैन्य मौजूदगी बनाए हुए है। इराक में अभी भी करीब 2,500 अमेरिकी सैनिक तैनात हैं, जहां अमेरिका ने हाल ही में इस्लामिक स्टेट के खिलाफ दो बड़े ऑपरेशन किए हैं, जिसके बारे में बताया जाता है, कि उसने गाजा में चल रहे युद्ध का फायदा उठाकर खुद को फिर से संगठित और हथियारबंद कर लिया है।

ईरान ने कैसे जीत लिया इराक?

न्यूयॉर्क टाइम्स (NYT) की एक रिपोर्ट में कहा गया है, कि बगदाद में न तो हमास और न ही हूती कार्यालय पर सार्वजनिक साइनबोर्ड है, और उनके दफ्तर को गोपनीय रखा गया है। यह कदम ईरान की अपने प्रॉक्सी को एकजुट करने और सीमाओं के पार सहयोग को बढ़ावा देने की व्यापक रणनीति का हिस्सा है। इन कार्यालयों के खुलने की सुविधा देकर, बगदाद ईरान, इजराइल और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच ‘छाया युद्ध’ का एक नया केंद्र बन गया है।

करीब 1,000 किलोमीटर की सीमा शेयर करने वाले ईरान और इराक के बीच सैन्य संघर्षों का इतिहास रहा है। 1979 की ईरानी क्रांति के तुरंत बाद, जब देश एक धार्मिक व्यक्ति – जिसे रहबर कहा जाता है – उसके नेतृत्व में एक शिया गणराज्य बन गया, जिसके बाद इराकी शासक सद्दाम हुसैन ने ईरान पर आक्रमण करने का आदेश दिया और ये युद्ध (1980-88) आठ साल तक चला।

आठ साल का युद्ध, इराक की ईरान के कट्टरपंथी शिया रुख के प्रति प्रतिक्रिया थी और यह एक सुन्नी नेता की ओर से हमला किया गया था, जिसने शियाओं के बहुमत वाले देश पर शासन करने वाली एक सत्तावादी सरकार चलाई थी। दोनों देशों के बीच 2003 तक खराब संबंध बने रहे, जब अमेरिका के नेतृत्व वाली गठबंधन सेना ने सद्दाम हुसैन को पद से हटा दिया और फिर फांसी दे दी।

सद्दाम हुसैन को डर था, कि ईरानी क्रांति इराक में फैल सकती है और पड़ोसी देश के साथ सांप्रदायिक शिया संबंध के कारण उनके शासन को खतरा हो सकता है। लेकिन, अब दोनों फिर से दोस्त हो गये हैं।

रिपोर्ट्स बताती हैं, कि इस घटनाक्रम से कई इराकी अधिकारियों की असहजता के बावजूद, ईरान के बढ़ते प्रभाव का विरोध करने के लिए उनके पास राजनीतिक ताकत की कमी है। सोशल मीडिया पर ऐसी तस्वीरों की बाढ़ आ गई है, जो इराक में इन समूहों की मौजूदगी को उजागर करती हैं।

इराक ने बदल लिया पाला?

सद्दाम हुसैन के पतन के बाद से पिछले 20 वर्षों में इराक ने ईरान और संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने के लिए संघर्ष किया है। जबकि अमेरिका अभी भी देश में सैनिकों को बनाए रखता है, लेकिन देश में ईरान का प्रभाव लगातार बढ़ता गया है।

ईरान ने सहानुभूति रखने वाली ताकतों की भारी मदद की है और मिलिशिया को खाद डाला है, जिन्होंने अब इराक में राजनीतिक शक्ति हासिल कर ली है। ये मिलिशिया ग्रुप, इराक के राजनीतिक और सुरक्षा तंत्र में खुद को गहराई से समाहित करने में कामयाब रहे हैं। इन शिया मिलिशिया के उदय, जिनमें से कुछ को इराक की सरकार द्वारा वैध बनाया गया था, उसने देश की राजनीतिक को बहुत हद तक बदल दिया है।

ईरान करना क्या चाहता है?

इराक में हमास और हूती दफ्तरों का खुलना ईरान की बहुत बड़ी कामयाबी है, जो उसके क्षेत्रीय रणनीति का हिस्सा है, जो लंबे समय से लेबनान (हिजबुल्लाह के माध्यम से) से यमन (हूतियों के माध्यम से) तक फैले प्रभाव का “शिया क्रिसेंट” विकसित करने की कोशिश कर रहा है। अब इसमें इराक एक केंद्रीय भूमिका निभाता दिख रहा है।

ईरान का मकसद साफ है- पश्चिम एशिया में अमेरिका और इजराइल के प्रभाव का मुकाबला करना, जिसमें हमसा और हूती जैसे ईरानी प्रॉक्सी काफी अहम भूमिका निभाते हैं। यमन के हूती विद्रोही और लेबनान के हिज्बुल्लाह, लगातार इजराइल पर हमले करते रहते हैं, वहीं हूती विद्रोही लाल सागर में जहाजों को निशाना बनाते हैं। वहीं, अब जबकि ईरान ने इराक को पश्चिमी देश और इजराइल गठबंधन के खिलाफ “प्रतिरोध की धुरी” के रूप में खुद को स्थापित कर लिया है, तो तेहरान दशकों में पहली बार इस क्षेत्र पर अपना प्रभुत्व स्थापित करता दिख रहा है।

क्या अमेरिका ने इराक को हमेशा के लिए ईरान के हाथों खो दिया है?

इसमें कोई शक नहीं है, कि अमेरिका इराक में लंबे समय तक युद्ध लड़ने के लिए तैयार नहीं है। इसके सैन्य अभियानों की संख्या और पैमाने में कमी आई है। अमेरिकी सेनाएं 20 साल से भी पहले सामूहिक विनाश के हथियारों की तलाश में इराक गई थीं और सद्दाम हुसैन की सेना पर जल्दी ही जीत हासिल कर ली थी। इसके बाद इराक में करीब एक दशक तक गृहयुद्ध चला।

सामूहिक विनाश के कोई हथियार नहीं मिले लेकिन अमेरिका के 4,400 से ज्यादा सैनिक मारे गये। जिसने इराक में सेना रखने के खिलाफ अमेरिका की आम राय को बदल दिया है। हालांकि, अभी भी वहाँ करीब 2,500 अमेरिकी सैनिक हैं लेकिन उनके सैन्य अभियान प्रतिबंधित हैं।

अमेरिकी प्रशासन में यह भी एहसास बढ़ रहा है कि अगर स्थानीय आबादी ऐसे मिलिशिया को समर्थन देती है, तो वह इराक और सीरिया में इस्लामिक स्टेट या अफगानिस्तान में तालिबान जैसे विद्रोही समूह को सत्ता में आने से रोकने के लिए अपनी सेना नहीं रख सकता। अमेरिकी नीति में इस बदलाव ने ईरान को इराक में और ज़्यादा ज़मीन हासिल करने का मौका भी दिया है, जहां सांप्रदायिक समूह कई क्षेत्रों पर अपना दबदबा बनाए हुए हैं।

हालांकि, इराक में ईरान समर्थित समूहों की मौजूदगी ने इराक के भीतर संभावित इजराइली जवाबी हमलों के बारे में चिंताएं बढ़ा दी हैं। अगर ऐसा होता है, तो क्षेत्रीय संतुलन और बिगड़ जाएगा। वहीं, मुस्लिम ब्रदरहूड गाजा के फिलिस्तीनी संगठन को फिर से संगठित करने में मदद कर सकते हैं और कट्टरपंथी शिया विचारधारा से प्रभावित लोग हूतियों के पीछे खड़े हो सकते हैं।

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